“ZO बोले: इधर आ मोटे! जनता बोले: हटाओ ऐसे अफसर को!”

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

लखनऊ नगर निगम जोन-6 में तैनात जोनल अधिकारी मनोज यादव का एक वीडियो इस वक्त इंटरनेट पर गर्म गोस्से का कारण बन चुका है। वीडियो में वह गाड़ी में बैठे हैं, और बाहर खड़े आम नागरिकों को “मोटे”, “चोर”, “चोट्टे” जैसे डायलॉगबाज़ी वाले शब्दों में गरियाते नज़र आ रहे हैं।

जनता पूछ रही है – “ZO साहब, हम जनता हैं, विलेन नहीं!”

भाषा की मर्यादा गई छुट्टी पर

एक तरफ सरकार मिशन शक्ति चला रही है, दूसरी तरफ़ ZO साहब ‘मिशन गाली’ पर निकले हैं। “ड्रामा मत कर मोटे… इधर आ चोर…”

ऐसा लग रहा है जैसे ZO नहीं, लो-कॉस्ट विलेन का ऑडिशन चल रहा हो।

अब लखनऊ वाले पूछ रहे हैं – “ZO हैं या ज़्यादा ओवरएक्टिंग कर रहे हैं?”

अफसर का रवैया, लोकतंत्र का तमाचा

अफसरशाही में दबंगई नया नहीं, लेकिन जब कैमरे में कैद हो जाए तो “भंडाफोड़ LIVE” हो जाता है। इस मामले में सबसे दुखद बात ये नहीं कि भाषा अमर्यादित थी, बल्कि ये कि ये सब कुछ ZO साहब को सामान्य लग रहा था।

उन्हें ना नगर आयुक्त का डर, ना मेयर सुषमा खर्कवाल का खौफ — जैसे किसी ने “लोक सेवा” को “लोक पे हुक्म चलाना” समझ लिया हो।

नगर निगम की इमेज में सेंध

अभी तक नगर निगम की इमेज सिर्फ “कूड़ा नहीं उठता” वाली थी, अब उसमें नया चैप्टर जुड़ गया है — “ZO की ज़ुबान भी गंदी है!” सरकार भले ही सुशासन की बात करे, लेकिन अफसरशाही का ये हाल देख जनता कह रही है। “सुशासन कहाँ? इहां तो जुबानी आतंकवाद चल रहल बा!”

नगर निगम या नेगेटिव रोल वाला सीरियल?

ZO मनोज यादव के पास सभी क्वालिटी है:

  • Dialog Delivery: “अरे चोर कहीं के…”

  • Body Language: गाड़ी में बैठे-बैठे राजा टाइप

  • Tone: “तू जनता है, मैं कौन हूं?”

“साहब, ZO तो ठीक है,
लेकिन Negative Role के लिए SET MAX पे apply कर लीजिए!”

सत्ता की कुर्सी पर बैठकर ज़ुबान की लगाम मत खोलिए

सरकार को तय करना होगा कि क्या ऐसी भाषा और व्यवहार से नागरिक सेवा का सम्मान बढ़ता है या धूल में मिल जाता है। क्योंकि जनता अब समझ चुकी है – “ड्रामा” करना उनका नहीं, सिस्टम का रोज़ का काम है।

विकास गया छुट्टी पर, जातीय सम्मेलनों का समय है

Related posts

Leave a Comment